मक्का और आलू किसानों के लिए PPP योजना 2025: यूपी सरकार की नई साझेदारी से बढ़ेगी आमदनी

प्रस्तावना: किसानों के लिए एक नई उम्मीद

किसान हमारे देश की रीढ़ हैं, और जब उनकी मेहनत का उचित मूल्य उन्हें नहीं मिल पाता, तो न केवल उनका परिवार प्रभावित होता है बल्कि देश की आर्थिक व्यवस्था भी कमजोर होती है। उत्तर प्रदेश जैसे कृषि प्रधान राज्य में किसानों के लिए सरकार की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 20 जुलाई 2025 को एक नई योजना की शुरुआत की है — PPP योजना 2025, जो खासतौर पर मक्का और आलू किसानों के लिए बनाई गई है।

इस योजना के अंतर्गत किसानों को बाजार में फसल बेचने के लिए स्थायी और भरोसेमंद माध्यम मिलेगा, जिससे उनकी आमदनी में सीधा इज़ाफा होगा। यह एक आधुनिक कृषि मॉडल है, जो सरकार और निजी क्षेत्र के सहयोग से संचालित होगा।


PPP मॉडल क्या है और क्यों है जरूरी?

PPP यानी “सार्वजनिक–निजी भागीदारी” एक ऐसा तरीका है जिसमें सरकार और निजी कंपनियां मिलकर किसी योजना को लागू करती हैं। इसका मकसद यह होता है कि सरकार की सुविधाएं और निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता को एक साथ मिलाकर बेहतर परिणाम हासिल किए जाएं। को मिलाकर योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर कारगर बनाया जाए। कृषि क्षेत्र में यह मॉडल विशेष रूप से कारगर माना जा रहा है क्योंकि इससे किसानों को तकनीकी, विपणन और भंडारण से जुड़ी समस्याओं से राहत मिल सकती है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मॉडल को मक्का और आलू किसानों के लिए अपनाया है ताकि उन्हें उनकी फसल का सही मूल्य मिल सके और वे मंडियों की अस्थिरता से बच सकें। इस योजना के तहत सरकार ने निन्जाकार्ट (Ninjacart) नाम की एक अग्रणी निजी एग्रीटेक कंपनी के साथ समझौता किया है।


क्या है निन्जाकार्ट और इसकी भूमिका

निन्जाकार्ट भारत की प्रमुख एग्रीटेक कंपनियों में से एक है, जो किसानों से सीधे उपज खरीदकर उसे रिटेल स्टोर्स और ग्राहकों तक पहुंचाती है। यह कंपनी पहले से ही कई राज्यों में सक्रिय है और किसानों को बिचौलियों से मुक्ति दिलाकर उन्हें उचित मूल्य प्रदान कर रही है।

उत्तर प्रदेश सरकार के साथ इस साझेदारी में निन्जाकार्ट ने सहमति दी है कि वह पहले चरण में राज्य के पांच जिलों के करीब 10,000 किसानों से हर साल लगभग 25,000 टन मक्का और आलू खरीदेगी। इसका मतलब है कि अब इन किसानों को अपनी फसल की बिक्री के लिए न तो मंडी के चक्कर लगाने होंगे और न ही कीमत गिरने का डर रहेगा।


किन जिलों से हुई शुरुआत

इस योजना की शुरुआत फिलहाल उत्तर प्रदेश के पांच जिलों से की गई है, जहां मक्का और आलू का उत्पादन अधिक मात्रा में होता है। ये जिले हैं:

  1. लखीमपुर खीरी
  2. बहराइच
  3. गोंडा
  4. बस्ती
  5. गोरखपुर

इन जिलों का चयन इस आधार पर किया गया है कि यहां खेती पर बड़ी संख्या में लोग निर्भर हैं और फसल का बाज़ार तक पहुंचना अक्सर चुनौतीपूर्ण होता है।


किसानों को क्या लाभ मिलेगा?

इस योजना से किसानों को कई तरह के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ होंगे, जिनमें प्रमुख हैं:

स्थायी और सुनिश्चित बाजार
किसानों को अब यह चिंता नहीं रहेगी कि मंडी में उनकी फसल कितने दाम पर बिकेगी। निन्जाकार्ट के साथ किए गए समझौते के अनुसार, किसानों को एक निश्चित न्यूनतम मूल्य मिलेगा।

सीधी बिक्री का मौका
किसान सीधे कंपनी को फसल बेच सकेंगे। इससे बिचौलियों की भूमिका समाप्त होगी और किसान को फसल का पूरा मूल्य मिलेगा।

उन्नत तकनीक और ट्रेनिंग
निन्जाकार्ट किसानों को उन्नत कृषि तकनीकों, सिंचाई विधियों, फसल संरक्षण और जैविक खेती से संबंधित प्रशिक्षण भी देगी।

भंडारण और लॉजिस्टिक्स
कई बार फसल को बाजार में ले जाने से पहले ही वह खराब हो जाती है। अब कंपनी फसल को खेत से ही उठाएगी और अपने नेटवर्क से उसे बाजार तक पहुंचाएगी।

इथेनॉल उत्पादन से अतिरिक्त मांग
मक्के का उपयोग इथेनॉल बनाने के लिए भी किया जाएगा, जिससे किसानों की उपज की मांग और कीमत दोनों बढ़ेंगी। इससे सरकार के इथेनॉल मिशन को भी बल मिलेगा।


योजना में कैसे करें भागीदारी?

इस योजना में भाग लेने के लिए किसान को अपने ब्लॉक या जिला कृषि अधिकारी से संपर्क करना होगा। इसके अलावा कृषि विज्ञान केंद्रों पर भी जानकारी उपलब्ध कराई गई है। रजिस्ट्रेशन के लिए निम्नलिखित दस्तावेज़ जरूरी होंगे:

  • आधार कार्ड
  • बैंक खाता विवरण
  • भूमि का रिकॉर्ड (खसरा/खतौनी)
  • वर्तमान फसल की जानकारी

सरकार डिजिटल रजिस्ट्रेशन की भी व्यवस्था कर रही है, जिससे किसान ऑनलाइन भी आवेदन कर सकें।


सरकार का दीर्घकालिक विजन

यह योजना केवल एक व्यापारिक समझौता नहीं है, बल्कि एक व्यापक सोच का हिस्सा है। उत्तर प्रदेश सरकार किसानों की आमदनी दोगुनी करने के उद्देश्य को लेकर कई योजनाएं पहले से ही चला रही है। PPP योजना उन योजनाओं में एक नया और मजबूत आयाम जोड़ती है।

सरकार का मानना है कि यदि किसान सीधे बाजार से जुड़ते हैं, तो वे अधिक उत्पादन करेंगे, बेहतर बीज और तकनीक अपनाएंगे और कृषि को लाभ का व्यवसाय बना सकेंगे। इसके अलावा यह मॉडल ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और उद्यमिता को भी बढ़ावा देगा।


किसानों के अनुभव और प्रतिक्रिया

लखीमपुर खीरी के एक किसान सुरेश यादव का कहना है, “अब तक हम मंडी पर निर्भर थे, जहां दाम कब गिर जाए पता नहीं चलता था। लेकिन इस योजना से हमें भरोसा मिला है कि हमारी मेहनत बेकार नहीं जाएगी।”

इसी तरह गोरखपुर की किसान महिला रीता देवी कहती हैं, “अगर हमें फसल का सही दाम खेत पर ही मिल जाए, तो हम नई तकनीक भी अपनाएंगे और उत्पादन भी बढ़ेगा।”

इस तरह के फीडबैक यह दर्शाते हैं कि यह योजना किसानों के दिलों को छू रही है और उनमें विश्वास जगा रही है।


योजना से जुड़ी चुनौतियां

हर योजना के साथ कुछ चुनौतियाँ भी होती हैं। इस PPP योजना में भी कुछ ऐसे मुद्दे सामने आ सकते हैं:

  • किसानों को डिजिटल रजिस्ट्रेशन और कंपनी की प्रक्रियाओं को समझाने की जरूरत होगी।
  • फसल की गुणवत्ता बनाए रखना, ताकि वह निजी खरीदार की मांग पर खरी उतरे।
  • निगरानी और पारदर्शिता बनाए रखना, ताकि किसानों को समय पर भुगतान और समर्थन मिले।

सरकार ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक विशेष निगरानी टीम और हेल्पलाइन की व्यवस्था करने की घोषणा की है।


निष्कर्ष: एक नई दिशा की ओर

PPP योजना 2025 उत्तर प्रदेश सरकार का एक ऐसा प्रयास है जो किसानों की ज़िंदगी में वास्तविक बदलाव ला सकता है। यह योजना सिर्फ मक्का और आलू किसानों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इसका मॉडल अन्य फसलों और जिलों में भी लागू किया जा सकता है।

सरकार, निजी कंपनियां और किसान — यदि तीनों मिलकर इस योजना को पूरी निष्ठा से अपनाएं, तो निश्चित ही यह योजना उत्तर प्रदेश के कृषि इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होगी।

यह केवल एक योजना नहीं, बल्कि किसानों की मेहनत और सरकार की नीयत का संगम है — जो उत्तर प्रदेश को आत्मनिर्भर और समृद्ध बना सकता है।


अगर आप भी इस योजना से जुड़ना चाहते हैं या अपने गांव के किसानों को जागरूक करना चाहते हैं, तो इस जानकारी को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाएं। सही योजना, सही समय पर और सही तरीके से लागू हो — तो बदलाव निश्चित है।

Gyan Singh Rjpoot

जुलाई 2025
सोममंगलबुधगुरुशुक्रशनिरवि
 123456
78910111213
14151617181920
21222324252627
28293031 

कन्या सुमंगला योजना 2025: बेटियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए यूपी सरकार की अनमोल सौगात

योगी आदित्यनाथ कन्या सुमंगला योजना 2025 के तहत महिलाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करते हुए, गोद में बेटियों के साथ माताएँ

भूमिका: एक बेटी का सम्मान, पूरे समाज का उत्थान

समाज की वास्तविक प्रगति तभी मानी जाती है जब उसकी बेटियाँ सुरक्षित, शिक्षित और आत्मनिर्भर हों। लेकिन कई बार आर्थिक समस्याओं के कारण बेटियों की शिक्षा अधूरी रह जाती है या उनका बचपन बोझिल हो जाता है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने एक बेहद संवेदनशील और कारगर योजना शुरू की है – कन्या सुमंगला योजना। 2025 में इस योजना को नए रूप में पेश किया गया है ताकि और भी बेटियाँ इसका लाभ उठा सकें।

यह योजना न केवल आर्थिक सहायता है, बल्कि बेटी के जन्म से लेकर उसकी शिक्षा तक हर पड़ाव पर सहारा बनकर खड़ी है। इस लेख में आपको इस योजना के बारे में पूरी जानकारी दी जाएगी – इसकी आवश्यकता क्यों है, कौन पात्र है, आवेदन कैसे करें और इसके पीछे सरकार की क्या सोच है।

योजना का परिचय: कन्या सुमंगला योजना क्या है?

कन्या सुमंगला योजना उत्तर प्रदेश सरकार की एक प्रमुख योजना है, जिसे विशेष रूप से बालिकाओं के कल्याण के लिए बनाया गया है। इस योजना का उद्देश्य बेटियों को जन्म से लेकर उनकी शिक्षा के विभिन्न स्तरों तक वित्तीय सहायता प्रदान करना है, ताकि वे बिना किसी बाधा के जीवन में आगे बढ़ सकें।

2025 में इस योजना को और सशक्त रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें 6 अलग-अलग चरणों में बेटियों को कुल ₹15,000 तक की सहायता दी जाती है। यह राशि सीधे लाभार्थी या उसकी माँ के बैंक खाते में जमा की जाती है।

योजना की आवश्यकता: यह योजना क्यों आवश्यक है?

भारत में आज भी कई क्षेत्रों में बेटियों को बोझ माना जाता है। भ्रूण हत्या, बाल विवाह, शिक्षा से वंचित होना जैसे मुद्दे आज भी कई घरों में मौजूद हैं। ऐसे में बेटियों के लिए सरकार द्वारा उठाया गया कोई भी कदम न केवल एक सामाजिक जिम्मेदारी है, बल्कि भावी पीढ़ियों को सशक्त बनाने का एक प्रयास है।

उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में, जहां ग्रामीण आबादी अधिक है और आर्थिक असमानता भी बड़ी समस्या है, कन्या सुमंगला योजना जैसे प्रयास बेटियों के प्रति सोच बदलने का सशक्त माध्यम बनते हैं। योजना की मुख्य विशेषताएं (2025 अपडेट के साथ):

चरण

लाभ

राशि (₹)

जन्म के समय

बेटी के जन्म पर

₹2,000

1 वर्ष के भीतर सभी टीकाकरण पूरे हो जाना

स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए

₹1,000

पहली कक्षा में प्रवेश

प्राथमिक शिक्षा के लिए प्रोत्साहन

₹2,000

छठी कक्षा में प्रवेश

शिक्षा की निरंतरता

₹2,000

नौवीं कक्षा में प्रवेश

किशोरावस्था में पढ़ाई जारी रखने के लिए

₹3,000

स्नातक/डिप्लोमा/इंटरमीडिएट में प्रवेश

उच्च शिक्षा के लिए सहायता

₹5,000

कुल राशि

6 चरणों में

₹15,000

पात्रता मानदंड – योजना का लाभ किसे मिल सकता है?

2025 में कुछ नई शर्तें भी जोड़ी गई हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल सही और ज़रूरतमंद परिवारों को ही योजना का लाभ मिले:

परिवार उत्तर प्रदेश का निवासी होना चाहिए।

परिवार की वार्षिक आय ₹3 लाख से कम होनी चाहिए।

एक परिवार की अधिकतम दो बेटियाँ इस योजना का लाभ उठा सकती हैं।

लाभ पाने के लिए बेटी का नाम जन्म रजिस्टर में दर्ज होना चाहिए।

बेटी का नियमित स्कूल में नामांकन होना चाहिए।

परिवार के पास ज़रूरी दस्तावेज़ (आधार कार्ड, आय प्रमाण पत्र, बैंक खाता आदि) होने चाहिए।

आवेदन प्रक्रिया – ऑनलाइन आवेदन कैसे करें?

उत्तर प्रदेश सरकार ने इस योजना को पूरी तरह से ऑनलाइन पोर्टल के ज़रिए उपलब्ध कराया है, जिससे आवेदन प्रक्रिया पारदर्शी, तेज़ और आसान हो गई है।

👉 चरण-दर-चरण आवेदन प्रक्रिया:

आधिकारिक पोर्टल पर जाएँ

“नागरिक सेवा पोर्टल” पर क्लिक करें।

“पंजीकरण” पर जाएँ और मोबाइल नंबर से ओटीपी के ज़रिए लॉगिन करें।

सभी आवश्यक दस्तावेज़ अपलोड करें:

जन्म प्रमाण पत्र

टीकाकरण कार्ड

आय प्रमाण पत्र

स्कूल प्रमाण पत्र

आधार कार्ड

बैंक खाता विवरण

फ़ॉर्म को ध्यान से भरें और सबमिट करें।

पोर्टल से आवेदन की स्थिति भी देखी जा सकती है।

आवश्यक दस्तावेजों की सूची

बालिका का जन्म प्रमाण पत्र

माता-पिता का पहचान पत्र (आधार/मतदाता पहचान पत्र)

पारिवारिक आय प्रमाण पत्र

स्कूल में नामांकन प्रमाण पत्र

बैंक पासबुक की प्रति

पासपोर्ट साइज फोटो

निवास प्रमाण पत्र

योजना का लाभ – सिर्फ पैसा नहीं, सोच में बदलाव

बेटियों को आर्थिक आजादी का अहसास

योजना के जरिए माता-पिता को आर्थिक मदद मिलती है और बेटी की पढ़ाई नहीं रुकती।

लैंगिक भेदभाव में कमी

बेटियों को सरकारी संरक्षण मिलता है, समाज में उनका महत्व बढ़ता है।

बाल विवाह पर रोक

योजना की राशि सिर्फ पढ़ाई के लिए होने से लोग कम उम्र में शादी नहीं करते।

लड़कियों की शिक्षा दर में सुधार

स्कूलों में लड़कियों के नामांकन दर में स्पष्ट वृद्धि हुई है।

जनसंख्या नियंत्रण को प्रोत्साहन

योजना का लाभ सिर्फ दो बेटियों को मिलने से परिवार को सीमित रखने की प्रेरणा मिलती है।

2025 में क्या नया है?

डिजिटल निगरानी प्रणाली: अब प्रत्येक चरण पर लाभ वितरण पर ऑनलाइन ट्रैकिंग उपलब्ध है।

मोबाइल अलर्ट सुविधा: लाभार्थियों को एसएमएस और ईमेल के माध्यम से सूचना मिलेगी।

ग्राम पंचायत स्तर पर सहायता केंद्र: आवेदन में सहायता के लिए सरकार द्वारा ग्राम स्तर पर सहायता डेस्क स्थापित किए गए हैं।

बालिकाओं के नाम पर सावधि जमा सुविधा (पायलट परियोजना): इसे कुछ जिलों में प्रायोगिक आधार पर शुरू किया गया है।

समाज में अनुभव और प्रभाव

कई ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावकों ने कहा कि पहली बार उन्हें लगा कि सरकार उनकी बेटी होने पर खुश है। जिन परिवारों की बेटियाँ पहले स्कूल नहीं जा पाती थीं, उन्हें अब यूनिफॉर्म से लेकर स्कूल बैग और किताबों तक की पूरी व्यवस्था मिल रही है।

योजना के माध्यम से बेटियाँ न केवल पढ़ाई कर रही हैं, बल्कि वे प्रतियोगी परीक्षाओं में भी भाग ले रही हैं, आगे बढ़ रही हैं और अपने समाज को एक नया नजरिया दे रही हैं।

कन्या सुमंगला योजना 2025 केवल एक योजना नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक परिवर्तन है। यह उस सोच को तोड़ती है जो कहती थी कि बेटियाँ बोझ हैं। यह संदेश देती है कि सरकार, समाज और परिवार – तीनों मिलकर जब एक बेटी का साथ देते हैं, तब एक संपूर्ण राष्ट्र का भविष्य उज्ज्वल होता है।

अगर आपके घर में बेटी है, और आप उत्तर प्रदेश में रहते हैं, तो इस योजना का लाभ उठाना न भूलें। यह न केवल बेटी के लिए फायदेमंद है, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणादायक कदम है।

Gyan Singh Rjpoot

दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (DDU-GKY): ग्रामीण युवाओं के लिए आत्मनिर्भरता की दिशा में एक ठोस प्रयास

परिचय:
भारत एक विशाल ग्रामीण देश है, जहाँ आज भी देश की अधिकांश आबादी गाँवों में निवास करती है। ये गाँव न केवल भारत की आत्मा हैं, बल्कि देश की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संरचना की नींव भी हैं। लेकिन इन गाँवों में रहने वाले लाखों युवाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती रोज़गार की कमी है। जब शिक्षा पूरी हो जाती है, तो सवाल उठता है – “अब क्या करें?”

इन सवालों और चुनौतियों का जवाब है – “दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (DDU-GKY)”। यह योजना न केवल रोज़गार का साधन बनती है, बल्कि युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने का ठोस रास्ता भी दिखाती है। यह योजना एक सपना है – गाँव के हर घर में रोज़गार हो, हर युवा में आत्मविश्वास हो और हर परिवार की आर्थिक स्थिति मज़बूत हो।

योजना का शुभारंभ:
डीडीयू-जीकेवाई को भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर 25 सितंबर 2014 को लॉन्च किया था। इसका उद्देश्य ग्रामीण गरीब युवाओं को कौशल विकास के माध्यम से प्रशिक्षण प्रदान करना था, जिससे उन्हें उद्योगों की आवश्यकता के अनुसार नौकरी पाने में मदद मिल सके।

यह योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत चलती है और इसका दायरा पूरे भारत में है, खासकर उन राज्यों में जहां गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी की दर अधिक है। डीडीयू-जीकेवाई इस मिशन का एक प्रमुख स्तंभ है, जो गरीबी को जड़ से खत्म करने की दिशा में काम करता है।

योजना की विशेषताएं:

यह योजना 15 से 35 वर्ष के बीच के ग्रामीण गरीब युवाओं के लिए है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिला, अल्पसंख्यक और दिव्यांगजन जैसी विशेष श्रेणियों के लिए अधिकतम आयु सीमा 45 वर्ष तक है।

यह पूरी तरह से निःशुल्क है – प्रशिक्षण, भोजन, आवास, पोशाक, अध्ययन सामग्री, सब कुछ बिना किसी शुल्क के दिया जाता है।

योजना के तहत चयनित युवाओं को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त प्रमाण पत्र दिए जाते हैं। ये प्रमाण पत्र भारत के किसी भी कोने में नौकरी पाने में सहायक होते हैं।

प्रशिक्षण व्यावसायिक आवश्यकताओं पर आधारित होता है – जैसे आईटी, स्वास्थ्य सेवा, आतिथ्य, खुदरा, निर्माण, ऑटोमोबाइल, फैशन डिजाइनिंग, सौंदर्य कल्याण, आदि।

प्रशिक्षण पूरा होने के बाद युवाओं को नौकरी पाने में पूरी सहायता प्रदान की जाती है। कई मामलों में, कंपनियाँ सीधे प्रशिक्षण केंद्रों पर आती हैं और चयन करती हैं।

प्रशिक्षण की अवधि पाठ्यक्रम के आधार पर 3 महीने से 12 महीने तक हो सकती है।

समस्या की जड़ पर प्रहार:
भारत में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। कई युवा अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद या तो खेती में लग जाते हैं या बड़े शहरों में चले जाते हैं। वहाँ उन्हें बहुत कम वेतन पर अस्थायी और असुरक्षित नौकरियाँ मिलती हैं। डीडीयू-जीकेवाई इस स्थिति को बदलने का काम करता है। यह गाँव में रहने वाले युवाओं को स्थानीय स्तर पर रोजगार के योग्य बनाता है। इससे पलायन रुकता है, गाँव की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है और सामाजिक ताना-बाना भी मजबूत होता है।

महिलाओं की भागीदारी:
इस योजना की एक खास बात यह है कि इसमें महिलाओं को विशेष प्राथमिकता दी गई है। आमतौर पर ग्रामीण इलाकों में लड़कियां जल्दी पढ़ाई छोड़ देती हैं और उनके लिए बहुत कम अवसर उपलब्ध होते हैं। यह योजना ऐसी लड़कियों को हुनरमंद बनाने और आजीविका से जोड़ने का अवसर देती है। अब महिलाएं प्रशिक्षण लेकर विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही हैं और अपने परिवार का सहारा बन रही हैं। कहानी के जरिए समझें: उत्तर प्रदेश के सुदूर गांव की एक लड़की सीमा की कल्पना करें। सीमा ने 12वीं पास कर ली है, लेकिन उसके पास आगे की पढ़ाई के लिए संसाधन नहीं हैं। परिवार की हालत भी अच्छी नहीं है। फिर उसे DDU-GKY के बारे में पता चलता है। वह नजदीकी ट्रेनिंग सेंटर जाती है, आवेदन करती है और हॉस्पिटैलिटी का कोर्स कर लेती है। 6 महीने की ट्रेनिंग के बाद सीमा को एक मशहूर होटल में नौकरी मिल जाती है। अब वह न सिर्फ आत्मनिर्भर है, बल्कि अपने घर की आर्थिक जिम्मेदारियां भी निभा रही है। इस योजना ने सीमा जैसे लाखों युवाओं की जिंदगी बदल दी है। यह सिर्फ एक योजना नहीं, बल्कि अवसरों की एक खिड़की है, जो गांवों के युवाओं के लिए खुली है। प्रमुख प्रशिक्षण पाठ्यक्रम: DDU-GKY कई अलग-अलग क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्रदान करता है। इनमें शामिल हैं:

सूचना प्रौद्योगिकी और डेटा प्रबंधन

स्वास्थ्य सेवा और संबद्ध चिकित्सा क्षेत्र

आतिथ्य प्रबंधन और होटल सेवाएँ

खुदरा विपणन

निर्माण कौशल

वाहन मरम्मत और संचालन

सौंदर्य और फैशन डिजाइन

प्रशिक्षण केंद्र में कैसे शामिल हों:

अपने जिले के ग्रामीण विकास विभाग या जिला परियोजना कार्यालय से संपर्क करें।

उपलब्ध पाठ्यक्रमों और केंद्रों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए योजना की वेबसाइट (ddugky.gov.in) पर जाएँ।

आधार कार्ड, शैक्षिक प्रमाण पत्र, पासपोर्ट आकार की तस्वीरें, बीपीएल प्रमाण पत्र आदि जैसे आवश्यक दस्तावेज़ तैयार रखें।

प्रशिक्षण केंद्र में काउंसलिंग प्रक्रिया के माध्यम से पाठ्यक्रम का चयन किया जाता है।

Gyan Singh Rjpoot