
भारत सरकार ने हाल ही में एक बड़ा प्रशासनिक और तकनीकी बदलाव किया है, जो देश की वित्तीय पारदर्शिता और भुगतान प्रणाली को नई दिशा देगा। 16 जुलाई 2025 से केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों और विभागों को यह अनिवार्य किया गया है कि ₹75 करोड़ या उससे अधिक की राशि के सभी भुगतान अब केवल भारतीय रिज़र्व बैंक की e‑Kuber प्रणाली के माध्यम से ही किए जाएंगे।
यह कदम सरकार की डिजिटल इंडिया नीति और वित्तीय जवाबदेही को मजबूत करने की दिशा में एक और बड़ा प्रयास माना जा रहा है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि e‑Kuber प्रणाली क्या है, नया नियम क्या कहता है, यह क्यों लाया गया है, और इससे सरकार, अधिकारी, उद्योग और आम जनता पर क्या असर पड़ेगा।
e‑Kuber प्रणाली क्या है?
e‑Kuber भारतीय रिज़र्व बैंक की एक उन्नत कोर बैंकिंग प्रणाली है, जिसे विशेष रूप से सरकार और बैंकों के बीच डिजिटल भुगतान और धनराशि हस्तांतरण के लिए बनाया गया है। यह प्रणाली रीयल-टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) और नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT) जैसे माध्यमों का उपयोग करके तेज़ और सुरक्षित भुगतान सुनिश्चित करती है।
सरल भाषा में कहें तो e‑Kuber एक ऐसा डिजिटल मंच है, जिसके ज़रिए सरकारें सीधे भुगतान कर सकती हैं और सभी ट्रांजैक्शन का रिकॉर्ड सुरक्षित रूप से रखा जा सकता है।
नया नियम क्या कहता है?
वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि 16 जुलाई 2025 से केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों, विभागों और सरकारी उपक्रमों को ₹75 करोड़ या उससे ज़्यादा के भुगतान केवल e‑Kuber प्लेटफॉर्म के माध्यम से करने होंगे। पारंपरिक बैंकिंग उपाय जैसे चेक या भुगतान आदेश अब इस प्रक्रिया में मान्य नहीं होंगे।
इस नियम का उद्देश्य सरकारी भुगतान प्रक्रिया में पारदर्शिता, जवाबदेही और तकनीकी सक्षमता को बढ़ावा देना है।
सरकार ने यह कदम क्यों उठाया?
सरकार का मानना है कि इतने बड़े भुगतानों को पारंपरिक माध्यमों से करने में कई बार देरी, अनियमितता और भ्रष्टाचार की संभावना बनी रहती है। इसलिए डिजिटल और केंद्रीकृत प्रणाली अपनाना आज की जरूरत बन गया है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
- भुगतान में पारदर्शिता लाना
- वित्तीय प्रणाली में सुधार करना
- भुगतान प्रक्रिया को तेज़ और सटीक बनाना
- भ्रष्टाचार और वित्तीय हेरफेर को रोकना
- ऑडिट ट्रेल को आसान बनाना
जब सारे भुगतान एक डिजिटल प्लेटफॉर्म से होंगे, तो हर ट्रांजैक्शन रिकॉर्ड में रहेगा और उसकी निगरानी सरल होगी।
यह नियम किन संस्थानों पर लागू होगा?
यह नियम केवल एक या दो विभागों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे केंद्र सरकार के ढांचे पर लागू होगा। इसमें शामिल होंगे:
- सभी केंद्रीय मंत्रालय जैसे रक्षा, गृह, स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क परिवहन आदि
- सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियाँ जैसे BHEL, NTPC, ONGC आदि
- स्वायत्त संस्थान और निकाय जो सरकारी फंड से संचालित होते हैं
- विशेष योजनाओं के तहत संचालित बड़े पैमाने पर वित्तीय सहायता वाले कार्यक्रम
इन सभी सरकारी संस्थाओं को अब ₹75 करोड़ से अधिक के सभी भुगतान e‑Kuber प्रणाली के तहत ही निष्पादित करने होंगे।
प्रक्रिया में बदलाव कैसे आएगा?
अब तक, अधिकांश बड़े भुगतान के लिए मंत्रालय पहले आंतरिक मंजूरी देता था, फिर संबंधित वित्तीय अधिकारी (जैसे डीडीओ या पीएओ) बैंक से संपर्क करके चेक या अन्य माध्यमों से भुगतान करता था। इस प्रक्रिया में कई चरण होते थे और समय भी अधिक लगता था।
नए नियम के तहत यह प्रक्रिया इस प्रकार होगी:
- विभाग या मंत्रालय द्वारा भुगतान की डिजिटल स्वीकृति
- यह स्वीकृति सीधे e‑Kuber पोर्टल पर अपलोड होगी
- रिज़र्व बैंक द्वारा राशि को लाभार्थी के खाते में रीयल-टाइम में ट्रांसफर किया जाएगा
इस पूरी प्रक्रिया में कोई मैन्युअल दस्तावेज़ या हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे समय और संसाधनों की बचत होगी।
इससे सरकार को क्या लाभ होगा?
इस नियम के लागू होने से सरकार को कई स्तरों पर लाभ मिलेगा। सबसे पहले, भुगतान प्रक्रिया तेज़ होगी, जिससे योजनाओं और परियोजनाओं में देरी नहीं होगी। इसके अतिरिक्त:
- सरकारी धन के दुरुपयोग की संभावना कम होगी
- पारदर्शी प्रक्रिया से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा
- वित्तीय योजना और बजट प्रबंधन बेहतर होगा
- सभी लेन-देन का रिकॉर्ड डिजिटल रूप में उपलब्ध रहेगा
इससे सरकार की साख और दक्षता दोनों में वृद्धि होगी।
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निजी कंपनियों और ठेकेदारों पर असर
जिन कंपनियों या संस्थानों को सरकार से ₹75 करोड़ से अधिक भुगतान मिलते हैं, उन्हें भी इस बदलाव के साथ तालमेल बैठाना होगा। उन्हें अपने बैंक खाते और वित्तीय विवरण को पूरी तरह से अपडेट रखना होगा ताकि e‑Kuber से प्राप्त भुगतान सीधे उनके खातों में ट्रांसफर हो सके।
इससे उन्हें यह फायदा होगा कि भुगतान तुरंत और बिना किसी बिचौलिए के प्राप्त होंगे, जिससे उनके कार्य संचालन में गति आएगी।
आम जनता को क्या लाभ मिलेगा?
हालांकि यह नियम मुख्यतः सरकारी ढांचे पर केंद्रित है, लेकिन इसका प्रभाव आम जनता तक भी पहुंचेगा। जैसे:
- जिन योजनाओं में बड़ी धनराशि जारी की जाती है (जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य मिशन आदि), वहां फंड मिलने में देरी नहीं होगी
- जनता को मिलने वाली सुविधाएं और सेवाएं समय पर उपलब्ध होंगी
- योजनाओं की निगरानी और प्रदर्शन का मूल्यांकन सरल होगा
- डिजिटल प्रणाली से जनता को भी विश्वास मिलेगा कि उनका टैक्स पारदर्शी रूप से खर्च हो रहा है
क्या कुछ चुनौतियाँ भी आ सकती हैं?
जहां इस बदलाव के कई फायदे हैं, वहीं कुछ शुरुआती चुनौतियाँ भी देखने को मिल सकती हैं:
- सभी विभागों और अधिकारियों को डिजिटल प्रक्रिया समझाने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी
- तकनीकी समस्याएं जैसे सर्वर डाउन, नेटवर्क बाधाएं आदि अस्थायी रुकावटें पैदा कर सकती हैं
- छोटे शहरों और दूरदराज़ के कार्यालयों में पर्याप्त संसाधन की कमी हो सकती है
हालांकि सरकार ने इन सभी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए व्यापक स्तर पर तैयारी की है। प्रशिक्षण कार्यक्रम, तकनीकी सहायता और पोर्टल की मजबूती को प्राथमिकता दी जा रही है।
भविष्य की ओर एक कदम
e‑Kuber प्रणाली का यह विस्तार डिजिटल इंडिया की दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार अब पूरी तरह से पारदर्शिता और टेक्नोलॉजी के सहारे आगे बढ़ना चाहती है। जब भुगतान प्रक्रिया इतनी सटीक, पारदर्शी और तेज़ होगी, तो योजनाओं का लाभ भी सही समय पर लोगों तक पहुंचेगा।
इससे सरकारी कार्यप्रणाली में जनता का विश्वास बढ़ेगा और देश की आर्थिक व्यवस्था में मजबूती आएगी।
निष्कर्ष
₹75 करोड़ से ऊपर के भुगतान को e‑Kuber के ज़रिए अनिवार्य करना केवल एक तकनीकी बदलाव नहीं है, बल्कि यह भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार की दिशा में एक ठोस कदम है। यह पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता को बढ़ावा देगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकारें भी इस दिशा में कब और कैसे आगे बढ़ती हैं, और क्या भविष्य में ₹75 करोड़ की सीमा को और घटाकर छोटे भुगतानों को भी इसी प्रणाली से जोड़ा जाएगा। एक बात स्पष्ट है – भारत अब डिजिटल गवर्नेंस के उस रास्ते पर आगे बढ़ रहा है, जहां तकनीक ही पारदर्शिता और विश्वास की नींव बनेगी।
Gyan Singh Rjpoot
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